पश्चात्य कृषि आधुनिक कृषि की ओर अग्रसर

 पश्चात्य कृषि आधुनिक कृषि की ओर अग्रसर 

चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की ओर से 5 अक्टूसबर, 2020 को "वैश्विक भारतीय वैज्ञानिक (वैभव) शिखर सम्मेलन -2020" के भाग के रूप में 'परिशुद्ध कृषि या खेती'(Precision Agriculture) के अंतर्गत 'परिशुद्ध खेती के लिए सेंसर और सेंसिंग'(Sensors and Sensing for Precision Agriculture) विषय पर एक सत्र का आयोजन किया गया।

परिशुद्ध खेती के लिए सेंसर और सेंसिंग (Sensors and Sensing for Precision Agriculture)

  • यह भारत सरकार की विदेशों और भारतीय वैज्ञानिकों/शिक्षाविदों के चिंतन, पद्धतियों, अनुसंधान एवं विकास की संस्‍कृति को सिलसिलेवार व्‍यवस्थित विमर्श और रचनात्‍मक संवाद के जरिए एक साथ लाने तथा ठोस परिणामों के लिए रूपांतरण संबंधी शोध/अकादमिक संस्‍कृति की योजना तैयार करने तथा आत्‍मनिर्भर भारत के प्रयास को बल देने के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के आधार को मजबूत बनाने की एक पहल है।

परिचय

  • परिशुद्ध कृषि या खेती(Precision Agriculture) को परिशुद्धता कृषि या खेती भी कहा जाता है।
  • अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर परिशुद्धता कृषि या खेती पिछले दो दशकों में कृषि के क्षेत्र में सबसे महत्त्वपूर्ण घटनाओं में से एक है।
  • आज के कृषि सम्बन्धित मुद्दों जैसे उत्पादकता एवं पर्यावरणीय चिन्ताओं का सन्तुलन बनाए रखने के लिये प्रणालीगत दृष्टिकोण का उपयोग करके परिशुद्धता कृषि इस दिशा में एक नया समाधान उपलब्ध कराती है।
  • मिट्टी की उर्वरता और फसल की स्थिति पूरे खेत में एक समान नहीं होती है इसलिये कृषि निविष्टियों का पूरे खेत में एक समान दर पर प्रयोग करने से फसल उपज के मामले में वांछित परिणाम प्राप्त नहीं होते हैं।
  • फसल उत्पादन में सुधार लाने और पर्यावरणीय दुष्प्रभाव को कम करने के लिये मिट्टी की उर्वरता और फसल की स्थिति में विविधता को संचालित करना परिशुद्धता खेती का मुख्य उद्देश्य  है।

परिशुद्ध खेती (Precision Agriculture)

  • परिशुद्ध खेती में डिजिटल कृषि प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके फसल की उत्पादकता में वृद्धि करने का प्रयास किया जाता है।
  • परिशुद्ध खेती को सैटेलाइट फार्मिंग या स्थान विशिष्ट फसल प्रबंधन के रूप में भी जाना जाता है।
  • परिशुद्ध खेती में कृषि उपज को अधिकतम बनाने हेतु उचित समय पर सटीक और उपयुक्त मात्रा में जल, उर्वरक, कीटनाशक आदि आगतों का अनुप्रयोग किया जाता है अर्थात सही समय और सही स्थान पर खेत में सही मात्रा में कृषि निविष्टियों का इस्तेमाल करना ही परिशुद्ध खेती है।
  • परिशुद्ध खेती को इसके उपकरणों द्वारा संचालित किया जाता है। इन उपकरणों में शामिल हैं - सूचना एवं संचार तकनीक, वायरलेस सेंसर नेटवर्क, रोबोटिक्स, ड्रोन, वेरिएबल रेट टेक्नोलॉजी, जियोस्पेशियल मेथड्स और ऑटोमेटेड पोजिशनिंग सिस्टम इत्यादि।
  • परिशुद्ध खेती तकनीक फसल उत्पादन की आर्थिक और पर्यावरणीय स्थिरता में सुधार कर सकती है।

परिशुद्ध खेती के उपकरण और तकनीक

  • वैश्विक स्थिति निर्धारण तंत्र (जीपीएस) : यह परिशुद्ध या परिशुद्धता कृषि का मुख्य भाग है। जीपीएस से लैस उपकरण किसानों की कृषि गतिविधियों को अधिक उत्पादक और कुशल बनाने में सहायता करते हैं। जीपीएस की सहायता से किसान खेत में विशिष्ट स्थानों का चुनाव कर वहाँ पर जाकर मिट्टी के नमूने एकत्र कर सकता है और फसल की स्थिति की निगरानी कर सकता है। इससे किसानों को कृषि करने में आसानी होगी। 
  • भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) : भौगोलिक सूचना प्रणाली के पास अत्यधिक मात्रा में आँकड़ों को संसाधित करने की क्षमता है। यह नक्शे को बनाने के लिये स्थानीय आँकड़ों एवं उस स्थान की भौगोलिक विशेषताओं का प्रयोग करता है। कृषि जीआईएस जानकारी की परतों को (जैसे पैदावार, उपज नक्शे, मृदा सर्वेक्षण नक्शे, सुदूर संवेदित आँकड़े और मिट्टी के पोषक तत्व का स्तर आदि) संचित करता है। एक क्षेत्र की विशेषताओं का वर्णन कई प्रकार के आँकड़े कर सकते हैं, जैसे उपज, मिट्टी की बनावट और पोषक तत्वों की स्थिति।
  • परिवर्तनीय दर प्रौद्योगिकी(वेरिएबल रेट टेक्नोलॉजी) : यह प्रौद्योगिकी उन मशीनों का वर्णन करती है जो स्वचालित रूप से अपनी स्थान स्थिति के अनुसार अपने प्रयोग दरों में परिवर्तन कर सकती हैं। इस तकनीक में पौधों की वृद्धि या मिट्टी के पोषक तत्वों और प्रकार में विविधताओं के अनुसार मशीन पर प्राचल (पैरामीटर जैसे बीज, उर्वरक, कीटनाशक, सिंचाई का पानी) को अनुकूलित करके उपयोग किया जाता है। परिवर्ती दर साधित्र(variable rate instrument) में तीन घटक होते हैं - नियंत्रण कम्प्यूटर, स्थिति निर्धारण तंत्र और प्रवर्तक।
  • उपज प्रतिचित्रण(yield mapping) : यह परिशुद्धता खेती में एक मुख्य तकनीक है। उपज नक्शा एक क्षेत्र के भीतर उपज में परिवर्तनशीलता दिखाता है। कटाई प्रक्रिया के बाद उपज मानचित्रण तंत्र खेत में विभिन्न जगहों पर अनाज की मात्रा को मापता है और कटाई मशीन की स्थिति को रिकॉर्ड करता है।
  • सुदूर संवेदन (remote sensing): सुदूर संवेदन में उपग्रह और विमान आधारित सुदूर संवेदक(Aircraft based remote sensor) के प्रयोग से मिट्टी और फसल स्वास्थ्य (नमी, पोषक तत्वों, फसल रोगों आदि) के मूल्यांकन के लिये आँकड़े एकत्रित किये जाते हैं। फसल के प्रबंधन के लिये यह महत्त्वपूर्ण है कि फसल की अवस्था में किसी भी परिवर्तन का जल्दी पता चल जाये। छोटे खेत में किसान स्वयं फसल का प्रेक्षण कर सकता है किन्तु बड़े पैमाने पर उत्पादकों के लिये हर सप्ताह अपने खेत का सर्वेक्षण करना सम्भव नहीं है। किसानों को कीट और कीड़ों को नियंत्रित करने के अलावा मिट्टी की नमी और फसल रोग के प्रकोप को भी नियंत्रण में रखना पड़ता है।

लाभ

  • परिशुद्ध खेती से खाद्य समस्या, गरीबी और कुपोषण आदि का समाधान किया जा सकता है।
  • वैश्विक स्थिति निर्धारण तंत्र सहित अन्तरिक्ष प्रौद्योगिकी, भौगोलिक सूचना प्रणाली आदि कृषि फसल की उपज के बारे में जानकारी पाने में सहायता करते हैं और मौसम परिवर्तन, मिट्टी की नमी, फसल फीनोलॉजी, पोषक तत्वों की कमी, फसल रोग, घास व कीट प्रकोप आदि की निगरानी रखने में भी सहायक हैं। इससे फसल की उपज और आय अधिकतम मात्रा में हो सकती है।
  • वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने में परिशुद्ध खेती सहायक हो सकती है।

चुनौतियाँ

  • यद्यपि परिशुद्धता खेती को विकसित देशों में व्यापक रूप से अपनाया जा चुका है किन्तु भारत में यह प्रारम्भिक दौर में ही है जिसके मुख्य कारण हैं - छोटे भूमि जोत, कमजोर अवसंरचना, किसानों में जोखिम लेने की क्षमता की कमी, सामाजिक-आर्थिक और जनसांख्यिकीय परिस्थितियाँ।
  • भारत में ज़्यादातर सीमांत किसान हैं जिनके पास भूमि काफी कम मात्रा में है , इसलिए परिशुद्धता खेती को अपनाने में वो काफी कम रूचि लेते हैं।
  • भारत में सीमांत किसानों के पास कृषि में निवेश हेतु धन की कमी है , जो परिशुद्ध खेती में सबसे बड़ी समस्या है।
  • यहाँ के किसान अपेक्षाकृत कमजागरूक व शिक्षित हैं।

आगे की राह

  • परिशुद्ध खेती को प्रत्येक किसान तक पहुंचाने की आवश्यकता है, ताकि कम से कम संसाधनों के प्रयोग से अधिक से अधिक उत्पादन लिया जा सके। इसके प्रयोग से हम तीसरी हरित क्रांति के ध्वजवाहक बन सकते हैं। और कृषि  के क्षेत्र में अपना परचम लहरा सकते है। 
  • नैनो तकनीक, पॉलीहाउस, बायो तकनीक आदि आधुनिक तकनीक को परिशुद्ध खेती के साथ समन्वित किया जा सकता है।
  • परिशुद्ध खेती को आधुनिक तकनीक में मिलाकर एक सफल कृषक बनने का गौरव प्राप्त किया जा  है। 

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