जानिए क्या है पॉक्सो एक्ट ? इसके तहत क्यों और कितनी होती है सजा
पॉक्सो एक्ट के संदर्भ में केएससीएफ के अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष
- कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन (केएससीएफ) द्वारा पॉक्सो के क्रियान्वयन के संदर्भ में अध्ययन में निम्न बिंदु सामने आए हैं-
- प्रत्येक वर्ष यौन शोषण के तकरीबन 3000 मामले अदालत तक पहुंच नहीं पाते है जिसमें 99% मामले में यौन शोषण की शिकार बच्चियां होती हैं। इसका प्रमुख कारण पर्याप्त सबूत और सुराग न मिलने से पुलिस द्वारा इन मामलों की जांच को अदालत में आरोप पत्र दायर करने से पहले ही बंद कर दिया जाता है।
- हाल के वर्षों में यौन अपराधों में वृद्धि के बावजूद 2017 से 2019 में पुलिस के द्वारा बंद किए गए पॉक्सो के मामलों की संख्या बढ़ी है।
- देश में बाल यौन उत्पीड़न की शिकार हुई प्रत्येक चार पीड़ित लड़की न्याय से वंचित हुई क्योंकि पर्याप्त सबूतों के अभाव के कारण पुलिस के द्वारा उन मामलों को बंद कर दिया गया।
- एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार पुलिस के द्वारा बंद किए गए या ऐसे मामले जिनका निपटारा किया गया है उनमें अधिकांश मामलों में केस को बंद करने का कारण यह दिया गया है कि ‘मामले सही हैं, लेकिन अपर्याप्त सबूत हैं’।’ आंकड़ों के अनुसार पुलिस ने वर्ष 2019 में 43% मामलों को इसी आधार पर बंद कर दिया गया जो 2017 और 2018 की तुलना में बंद किए गए मामलों से अधिक है।
- अध्ययन में यह भी तथ्य सामने आया है कि पॉक्सो से जुड़े मामलों में केस को बंद करने में दूसरा सर्वाधिक दिया गया महत्वपूर्ण कारण “झूठी शिकायतों” को दिया गया है। यद्यपि ऐसे मामलों में पिछले वर्षों के मुकाबले वर्ष 2019 में कमी आई है।
- इसके साथ ही फाउंडेशन के द्वारा किए गए अध्ययन से यह भी तथ्य सामने आया है कि अदालतों के द्वारा भी न्याय में काफी ज्यादा समय लिया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2019 के अद्यतन आंकड़ों के अनुसार बाल उत्पीड़न के मामलों में लगभग 89% पीड़ित पक्ष अदालत में न्याय का इंतजार कर रहे हैं।
- इसके साथ ही फाउंडेशन के द्वारा किए गए अध्ययन से यह भी तथ्य सामने आया है कि पॉक्सो एक्ट के आधे से भी ज्यादा मामले लगभग 51% पाँच राज्यों में दर्ज किए गए। यह राज्य हैं मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली।
बता दें कि पॉक्सो शब्द संक्षिप्त अंग्रेजी वर्ण समूह है जो "प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट 2012" से बना है। हिंदी में इसे "लैंगिक उत्पीड़न से बच्चों के संरक्षण का अधिनियम 2012" कहते हैं। पॉक्सो शब्द इस कानून में शामिल सभी शब्दों के पहले अक्षर के समुच्चय से बना है। इस एक्ट के तहत नाबालिग बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराध और छेड़छाड़ के मामलों में सख्त कार्रवाई की जाती है। इसलिए यह एक्ट बच्चों को सेक्सुअल हैरेसमेंट, सेक्सुअल असॉल्ट और पोर्नोग्राफी जैसे गंभीर अपराधों से सुरक्षा प्रदान करता है। इससे यह उम्मीद बंधी है कि अब बच्चों के खिलाफ यौन हिंसा में कमी आएगी।
यहां पर यह बताना जरूरी है कि वर्ष 2012 में बनाए गए इस कानून के तहत अलग-अलग प्रकृति के अपराध के लिए अलग-अलग सजा तय की गई है, जिसका कड़ाई से पालन किया जाना भी सुनिश्चित किया गया है। बावजूद इसके, जब नाबालिगों के प्रति जारी यौन हिंसा में कमी नहीं आई तो ठीक छह साल बाद वर्ष 2018 में इसमें संशोधन करके यह स्पष्ट कर दिया गया कि 12 साल तक की बच्ची से दुष्कर्म करने के दोषियों को सजा-ए-मौत भी दी जा सकती है। इस कानूनी संशोधन के बाद आपराधिक प्रवृति के लोगों में हड़कम्प मचा हुआ है।यदि आप 2012 में बने पॉक्सो एक्ट की विभिन्न धाराओं पर नजर दौड़ाएंगे तो यह पाएंगे कि इस अधिनियम की धारा 4 के तहत वो मामले शामिल किए जाते हैं जिनमें बच्चे के साथ दुष्कर्म या कुकर्म किया गया हो। इस प्रकृति के मामले में सात साल सजा से लेकर उम्रकैद और अर्थदंड भी लगाया जा सकता है। वहीं, पॉक्सो एक्ट की धारा 6 के अधीन वे मामले लाए जाते हैं जिनमें बच्चों को दुष्कर्म या कुकर्म के बाद गम्भीर चोट पहुंचाई गई हो। ऐसे मामले में दस साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है और साथ ही साथ जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
इसी तरह, पॉक्सो अधिनियम की धारा 7 और 8 के तहत वो मामले पंजीकृत किए जाते हैं जिनमें बच्चों के गुप्तांग से छेडछाड़ की जाती है। इस प्रकार की धारा के आरोपियों पर दोष सिद्ध हो जाने पर पांच से सात साल तक की सजा और जुर्माना दोनों हो सकता है। वहीं, पॉक्सो एक्ट की धारा 3 के तहत पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट को भी परिभाषित किया गया है, जिसमें बच्चे के शरीर के साथ किसी भी तरह की हरकत करने वाले शख्स को कड़ी सजा का प्रावधान है।
बताते चलें कि 18 साल से कम उम्र के बच्चों से किसी भी तरह का यौन व्यवहार इस कानून के दायरे में अपने आप आ जाता है। जिससे यह कानून लड़के और लड़की को समान रूप से सुरक्षा प्रदान करता है। इस कानून के तहत पंजीकृत होने वाले मामलों की सुनवाई विशेष अदालत में होती है। इस एक्ट के तहत नाबालिग बच्चों के साथ दुष्कर्म, यौन अपराध और छेड़छाड़ के मामलों में कार्रवाई का प्रावधान है। यही नहीं, इस एक्ट के जरिए बच्चों को सेक्सुअल असॉल्ट, सेक्सुअल हैरेसमेंट और पोर्नोग्राफी जैसे अपराधों से सुरक्षा प्रदान होती है।
यहां पर यह भी बता दें कि 18 साल से कम किसी भी मासूम के साथ अगर दुराचार होता है तो वह पॉक्सो एक्ट के तहत आता है। इस एक्ट के लगने पर तुरंत गिरफ्तारी का प्रावधान है। इसके अतिरिक्त, एक्ट की धारा 11 के साथ यौन शोषण को भी परिभाषित किया जाता है, जिसका मतलब है कि यदि कोई भी व्यक्ति अगर किसी बच्चे को गलत नीयत से छूता है या फिर उसके साथ गलत हरकतें करने का प्रयास करता है या उसे पॉर्नोग्राफी दिखाता है तो उसे धारा 11 के तहत दोषी माना जाएगा। इस धारा के लगने पर दोषी को 3 साल तक की सजा हो सकती है। कुल मिलाकर इस कानून के निर्माण और उसमें किये गए संशोधन से पॉक्सो एक्ट की प्रासंगिकता समाज में बढ़ी है।
English translation of this topic below
Know what is the Pocso Act? Why and how much punishment is done under this
The special thing is that in the year 2018, this law was amended, after which a provision has been made to give death sentence to the culprits of raping a girl up to 12 years old. This has greatly strengthened the 'Protection of Children from Sexual Offenses' i.e. the POCSO (POCSO) Act and has led to fear in the public that if misbehaved can be punished. After the enactment of this law, if there are signs of reduction in such violence, then relatively improvement in the situation is not being felt at some places. This is bound to worry the administration.
Key findings of the KSCF study in the context of the Pocso Act
In the context of the implementation of Pocso by the Kailash Satyarthi Children's Foundation (KSCF), the study reveals the following points:
Nearly 3000 cases of sexual abuse do not reach the court every year, in which 99% of the cases of sexual abuse are girls. The main reason for this is that due to lack of sufficient evidence and clues, the investigation of these cases by the police is stopped before the charge sheet is filed in the court.
Despite the rise in sexual offenses in recent years, the number of pocso cases closed by police has increased in 2017 to 2019.
Every four victims of child sexual abuse in the country were denied justice because those cases were closed by the police due to lack of sufficient evidence.
According to NCRB data, in most of the cases that have been closed or dealt with by the police, the reason for closing the case is that 'the cases are true, but there is insufficient evidence'. In the year 2019, 43% of the cases were closed on the same basis, which is more than the cases closed in comparison to 2017 and 2018.
The study also revealed the fact that "false complaints" have been the second most important reason for closure of cases related to Pocso. Although such cases have decreased in the year 2019 as compared to previous years.
Along with this, the study done by the Foundation has also revealed that the courts are also taking a lot of time in justice. It is worth mentioning that as per the updated data for the year 2019, about 89% of the victims of child abuse cases are awaiting justice in the court.
Along with this, the study done by the Foundation has also revealed that more than half of the cases of Pocso Act were reported in about 51% of the five states. These states are Madhya Pradesh, Maharashtra, Uttar Pradesh, Haryana and Delhi.
Let us say that the word pocso is an abbreviated English letter group which is made up of "Protection of Children from Sexual Offenses Act 2012". In Hindi it is called "Protection of Children from Sexual Harassment Act 2012". The word pocso is made up of the first letter set of all the words included in this law. Under this Act, strict action is taken in cases of sexual offenses and molestation occurring with minor children. Therefore, the Act provides protection against serious crimes like sexual harassment, sexual assault and pornography to children. This has raised hopes that sexual violence against children will reduce.
It is necessary to state here that under this law enacted in the year 2012, different punishment has been fixed for the crime of different nature, which has also been ensured to be strictly followed. Despite this, when the ongoing sexual violence towards minors did not decrease, just six years later in 2018, it was amended to make it clear that the convicts of raping a child up to 12 years of age should also be punished-a-death. Can. After this legal amendment, people of criminal tendency have been stirred up.
If you look at the various sections of the Pocso Act made in 2012, then you will find that under Section 4 of this Act, cases are covered in which the child has been raped or maltreated. In a case of this nature, life imprisonment and imprisonment can be imposed from seven years to life. At the same time, cases are brought under Section 6 of the Pocso Act in which children have been severely hurt after rape or misdeeds. In such a case, the punishment can range from ten years to life imprisonment and a fine can also be imposed.
Similarly, under Sections 7 and 8 of the Pocso Act, cases are registered in which children are lynched from the genitals. If the accused of this type of section is proved guilty, both the punishment and the fine can be from five to seven years. At the same time, Penetrative Sexual Assault has also been defined under Section 3 of the Pocso Act, which provides for stringent punishment to any person who acts with the child's body.
Let us tell you that any sexual behavior from children below 18 years comes under the purview of this law. This law provides protection to the boy and the girl equally. The cases to be registered under this law are heard in a special court. Under this Act, there is a provision for action in cases of rape, sexual offenses and molestation of minor children. Not only this, through this act, children are protected from crimes like sexual assault, sexual harassment and pornography.
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